Sumiet23

Wednesday, 15 January 2014

येह पाप का संसर्ग..

जो मैने दिया.. वही मुझे मिलेे..।
इस नियम को.. आज समझते हुए..।
केहता हू मै मेेरे.. दिल और दिमाग से..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

झूठ ना कहू मै..चाहता हू जिसे..।
इतनी तोह बेवफा.. येह जबान ना निकले..।
करनाही पडेगा मुझे..जो मैने कहा है..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

लडकीको इन्सान सा.. देखे मेरी नजरे..।
इतना तोह ना बनू.. जैसे कुत्ते भेड़िये..।
जिसकी दवा नही.. वह रोगही ना लगे..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

कोई नही तो क्या.. रहूंगा मै अकेले..।
अकेले तोह आया था.. जाऊंगा भी अकेले..।
चैनसे क्या जिऊंगा.. किये वादे भूलाके..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

देखली येह दुनिया.. सब अपनेही मतलब मे..।
जरा भी खोना नही.. कुछ पाने के लिये..।
जझबातोंको कुचलते है.. सब यहा पैरोतले..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

चँद खुशी के खातीर.. जिस्म ए ईमान बेचते..।
करते प्यार किसीसे.. पर शादी किसी औरसे..।
घुस्सा और मिजाझ.. करवाते बस वह करते..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥

क्या कहू कैसे.. कितने सारे पाप हाये..।
पापी है हर कोई.. शरीफी नकाब लाये..।
पर अलग मेरी शक्सीयत.. और अलग ही रहे..।
येह पाप का संसर्ग.. तौबा.. मुझे ना लगे..॥


                   - Sumiet Talekar