Sumiet23

Thursday, 21 February 2013

दगाबाझ...

यही तोह वोह दुनिया है.. फिर भी सब बदल गया है..
दिखते यहाँ तोह सब है.. फिर भी कोई है नही..

मै आज भी अच्छा हूँ.. बदल तोह वोह गयी है..
पर क्यू सभी केहते है.. तू पेहले की तरह रहा नही..

खो गया है सब कुच्छ.. सब जगह अँधेरा है..
मंद सा मेरे जान का दिया.. वोह भी क्यू बुझता नही..?

खेल गयी वोह जीस्म से.. दिल को तोह मार ही दिया है..
खुद को आयिने मे देख.. क्यू उसे मेरी याद आती नही..?

प्यार के सिवा कुछ नही.. हाँ मुझमे कमी है..
पर देखा है मैने उन्हे.. जिन्हे पैसो से प्यार मिला नही..

मेरी तरह तोह नही.. पढी लिखी वोह बहोत है..
लेकिन ईंसानो की तरह.. क्यू उसे जिना आता नही..?

अच्छा ही मै करता गया.. पर बुरा ही मुझे मिला है..
कैसी है यह बेवसी.. माँग कर भी मुक्ती मिलती नही..

जो उसने किया मैरे साथ.. कभी तोह उसे वोह पाना है..
वरना दगाबाझोंके इलावा.. यहाँ कोई नजर आयेगा नही..



                                                            Sumiet23

  This was written in the remembrance of Manu..

Friday, 15 February 2013

देखा है मैने करीब से..

देखा है मैने करीब से | इस जहाँ को गेहराई से | एक इन्सान को बदलते हुए | देखा है मैने करीब से..

आँखे से टपकते खून को | अकेलेपन के स्मशान को | एक सच्चे प्यार को हारते हुए | देखा है मैने करीब से..

रीश्तोंको मरते हुए | वादोंके तुटते हुए | बिछड़ते उस बविष्य को | देखा है मैने करीब से..

अपना पराया हो जाना | प्यार नफरत मैं बदलना | अच्छे कर्मोंका बुरा अंजाम | देखा है मैने करीब से..

जिसने जन्नत दिखलाया | मुझसे गेहरा प्यार किया | उसीने दिये मौत को | देखा है मैने करीब से..

जिसके लिये दुनिया छोडी | जिसे हर वोह बात केह दी | उसीके हर झूठे ग्वाँहींको | देखा है मैने करीब से..

जिसे मैने भगवान माना | माँ, बेटी और बेहेन जाना | उसीके पैर की ठोकरोंको | देखा है मैने करीब से..

उसके चाहत भरे मौसम को | उसके हर एक जीस्म को | एक बेवफा के प्यार को | देखा है मैने करीब से..

दुनिया के सामने वोह अच्छी है | पर अंदर से तोह कुछ और ही है..
कोई ना जान सका उस "और" को...  हाँ.. जाना है मैने करीब से..




                                                   - Sumiet23

                        (This Article was written in the remembrance of Manu)

Thursday, 14 February 2013

तेरा ही रहूँगा...

जो भी कुच्छ करुँगा.. अच्छा ही करुँगा..
जिसने मुझे रुलाया.. उसका भी भला चाहुँगा..
अपने गलतीयोंका एहसास.. मैं हर रोज करुँगा..
कल किया था बुरा.. वोह मैं आज पाऊँगा..

तुने समझाया था कभी.. हा मैं अभी समझूँगा..
आँख मैं आँसू छूपाकर.. सबको मैं हसाउँगा..
खुद के खुशी के लिये.. अब ना किसी को सताउँगा..
जहा से आया था मैं.. फिर वही लौट जाऊँगा..

अपनोंने मुझे ठूकराया.. अब किसी का क्या कहलाऊँगा..?
अकेली ईन राहों मैं.. तुझे मैं धूँढ़ता फिरुँगा..
जिंदगी मैं बडा ना बन पाया.. पर अच्छा ईन्सान तोह बनूँगा..

ऐ मेरे खुदा.. जरा अपनाले यह सुमीत को..
के जब तक रहूँगा.. "तेरा ही रहूँगा.........."



Sumiet23